क्षत्रियों का सबसे बड़ा त्यौहार होता है, क्योंकि आज के दिन क्षत्रिय अपने शस्त्र (हथियारों) की पूजा करते थे, धीरे धीरे यह चलन कम हो गया, और क्षत्रिय युवा बस रावण दहन करने में मग्न हो गया, सबसे पहली बात तो रावण दिसम्बर सर्द ऋतु में देवलोक गये थे, इन दिनों उनकी मृत्यु नही हुई, ( अच्छा यह बड़ी बात हो गई, खैर फिर कभी विस्तार से समझायेंगे,) अब बात यह है कि क्षत्रिय सिर्फ रावण दहन करने में व्यस्त रहता है, अपने पूर्वजो की शान को खत्म कर रहे हो और शस्त्र पूजा तो न मात्र होती है अब... रावण को एक बार जलाओ या हजार बार फायदा क्या होगा इस लोकतंत्र में सोचा है क्या ?.. अच्छा कुछ हमारे समाज के मंदबुद्धि के युवा भी है जिनकी सोच महज किसी 10 वर्ष के बच्चे जैसी है जो बस किसी एक समाज से ईष्र्या पालकर बैठे है और रावण दहन करके उनको रिजाने की नजर में बैठे रहते है, मैं अपने स्वयंजातीय बंधुओ से आग्रह करता हूं कि हमने दुष्ट अपने समाज के कौरव हो या कंश हो या अन्य कोई हो, उनको भी मारा था, इसका मतलब यह नही की हर साल अब उनके पुतले फुके, क्षत्रिय कबसे पुतले फूंकने लगे ?.. क्षत्रिय तो नामो न...